समलेश्वरी और बूढ़ी माई साथ में हैं विराजमान
आरंगः राजा मोरध्वज की नगरी के नाम से सुविख्यात नगर आरंग की समिया माता जन आस्था का केन्द्र है। यहां वर्ष भर नगर सहित दूर-दूर से श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। ऊंची जगती पर स्थित उत्तरमुखी पत्थरों से निर्मित यह मंदिर बहुत प्राचीन है। 87 वर्षीय मंदिर के पुजारी हरखराम जलक्षत्री बताते हैं उनके पूर्वज चार पीढ़ियों से माता समिया की पूजा कर रहे हैं। यहां पहले काफी घना जंगल था। लोग यहां आने से डरते थे। सांप, बिच्छूओं का यहां बसेरा था। ऐसी मान्यता है नगर के सभी देवी-देवता यहां एकत्रित होकर बैठक करते थे। बाबा बागेश्वर, माता दंतेश्वरी व भांडदेवल मंदिर इसके आसपास ही है। माता की प्रतिमा एक ही पत्थर से निर्मित है। जिसमें समलेश्वरी और बूढ़ीमाई दोनों बहन साथ में विराजमान हैं। माता समलेश्वरी व बूढ़ी माई के दांए-बांए आठ-आठ योगनी की पाषाण प्रतिमा है। जो माता की सेविका है। इस मंदिर को लोग समिया माता के नाम से ही जानते हैं। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि माता समिया स्वयंभू शक्तिपीठ है। यहां सभी की मनोकामना पूर्ण होती है। यहां विधि-विधान से व्रत पूजा करने से कई कुंवारी लड़कियों का विवाह सम्पन्न हुआ हैं। विवाह के साथ-साथ पुत्र प्राप्ति की कामना भी यहां पूर्ण होती है। अनेक नवविवाहित दंपति सुखमय दाम्पत्य जीवन की कामना लेकर भी माता से आशीर्वाद लेने आते हैं। मंदिर की देखरेख व संचालन मंदिर के पुजारी हरखराम जलक्षत्री व उनके परिवार ही करते हैं। नवरात्रि में यहां सैकड़ों मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित की जाती है।मंदिर परिसर में एक विशाल पीपल व बरगद का वृक्ष है। उसके नीचे ही एक सुरंगनुमा गुफा है। जहां माता कामाक्षा विराजमान हैं। साथ ही कुछ प्राचीन प्रतिमाएं भी हैं। यहाँ से सिरपुर तक सुंरग होने की किवदंती भी चर्चा में हैं। जो लोगों के लिए कौतूहल व आकर्षण का केंद्र हैं। यहां पत्थरों से निर्मित सिंह की एक प्रतिमा है। जिसे लोग माता की सवारी मानते हैं। मंदिर के पश्चिम भाग में पत्थरों से निर्मित मौली माता की प्रतिमा है। उसकी भी पूजा आराधना साथ में ही किया जाता है।इस नवरात्रि में 215 मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित हो रही है।