नगर की गतिविधियों पर नजर रखती है मां खल्लारी

 


आरंगः देवालयों की नगरी आरंग में आदिशक्ति महामाया के महामाया के अनेक रूप है। जिनमें से एक है माता खल्लारी, नगर के प्रवेशद्वार व राष्ट्रीय राजमार्ग 53 किनारे विराजित माता खल्लारी के दर्शन के लिए वर्षभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर के पुजारी विजय सोनकर बताते हैं पश्चिमोन्नमुखी माता खल्लारी की प्राचीन प्रतिमा तीन पत्थरों से निर्मित है। उसे उत्कीर्ण नहीं किया गया था। बाद में लोगों ने माता के मुखमंडल को रुप दिए है। एक पुरानी नीम के विशाल पेड़ के पास चैंड़ी में स्थापित है। मंदिर के समीप ही एक प्राचीन तालाब है। जिसे झिलमिली तालाब के नाम से जाना जाता है। पहले यहां जंगल झाड़ीनुमा था। भक्तों के अनुसार यह क्षेत्र अहिराज सांप का गढ़ माना जाता है तथा आज भी भक्तों को रंग-बिरंगे देव सर्पों के दर्शन होते हैं साथ ही कई रोचक कहानियां भी समाज में प्रचलित है माता अपने भक्तों पर कृपा करके उनकी निर्धनता दूर करती है। पहले यहां जानवरों व सांप, बिच्छुओं का बसेरा होने से लोग यहां आने से कतराते थे। पहले यह स्थल कबीर पंथियों का मुक्तिधाम था। आज भी कई पुरानी मठों के अवशेष यहां देखें जा सकते हैं। प्रतिवर्ष यहां हनुमान जयंती के अवसर पर मेला व भंडारा का आयोजन किया जाता है। जहां हजारों श्रद्धालु पहुंचकर मेला व भंडारा में सम्मिलित होते है। मंदिर की देखरेख व संचालन स्थानीय लोगों के सहयोग से पुजारी विजय सोनकर ही करते हैं। दोनों नवरात्रि में श्रद्धालु यहां मनोकामना ज्योति प्रज्जवलित करते हैं। माता के दिव्य स्वरूप के दर्शन से ऐसा प्रतीत होता है जैसे नगर को निहार रही हो। ऐसी जन आस्था है कि माता वहीं से ही नगर की सभी गतिविधियों पर नजर रखती है और बाहरी विपदाओं से नगर की सुरक्षा करती है। पहले जब भी कभी महामारी फैलता था तो नगर के लोग माता का आशीर्वाद लेते थे। यही कारण है कि माता खल्लारी को ग्राम देवी होने का गौरव प्राप्त है। इस नवरात्रि में 31 मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित हो रही है।