शंख, चक्र, गदा, तलवार, कमल, खप्पर और ढाल धारण की है आरंग की महामाया

 


आरंगः मंदिरों की नगरी के नाम से प्रख्यात नगर आरंग की नगर देवी है मां महामाया। प्राचीन पाषाण से निर्मित है माता की अष्टभुजीय प्रतिमा।जो कि बहुत ही कम देखने सुनने को मिलती है। मां महामाया की प्रतिमा एक ही पत्थर से निर्मित है। मां महामाया हाथों में शंख, चक्र, गदा, तलवार, कमल, खप्पर, ढाल इत्यादि धारण की हुई है। जिससे माता की स्वरुप और भी आकर्षक और दिव्य प्रतीत होती है।

मंदिर के पुजारी चंदन पुरी गोस्वामी बताते हैं मंदिर के आसपास पहले काफी घनघोर जंगल था। जनश्रुतियों के अनुसार रायपुर के महामाया को लक्ष्मी, रतनपुर के महामाया को महाकाली और आरंग के महामाया को सरस्वती का रूप माना जाता है। मा महामाया का संबंध रतनपुर के महामाया से जुड़े होने की अक्सर लोग चर्चा भी करते हैं। वर्ष भर प्रतिदिन यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां लोग शादी विवाह व शुभ कार्य के अवसर पर पहुंच कर मां महामाया से आशीर्वाद प्राप्त करते है। प्रतिदिन यहां पुजारी द्वारा माता का स्नान, अभिषेक व चोला से अलग-अलग तरह से  सिंगार किया जाता है। मंदिर परिसर मे ही प्राचीन काफी गहरी बावली है, जो सदैव जल से भरा रहता है। जिसकी गहराई की जानकारी अभी तक किसी को नहीं है। हर वर्ष ज्योति विसर्जन मंदिर के पुजारी द्वारा इसी बावली में ही किया जाता है। जिसे किसी को देखने की अनुमति नहीं है। कहा जाता है पहले किसी ने ज्योति विसर्जन को देख लिया तो उसकी मृत्यु हो गई तब से विसर्जन को किसी को देखने की अनुमति नहीं है। नवरात्र में माताओं की विशेष पूजा अर्चना, जससेवा गीत गायन किया जाता है। दोनों ही नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि मां महामाया के दर पर जो भी श्रद्धालु पहुंचकर मत्था टेकते है उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। इस नवरात्रि में 306 मनोकामना ज्योति प्रज्वलित हो रही है।